Shama Bhujhne Lagi hai

Shama Bhujhne Lagi hai

A Poem by Dinesh Gupta
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Poem on Bharstrachar[ India Against Corruption_In Support of Anna Hazare]

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 देशप्रेम [ भ्रस्ट्राचार के विरुद्ध एक  जं�- ]
 
 
 
क्षमा बुझने �™�-ी है , परवानो को आना हो�-ा
सदियों से प्यासी है ये धरती , बाद�™ो को ज�™ बरसाना हो�-ा
मात्रभूमि की प्रीती पर , देशप्रेम की रीति पर
प�™ प�™ खंडित होती ज्वा�™ा में , अरमानो को ज�™ाना हो�-ा
वतन मां�- रहा क़ुरबानी है , सरो को कट जाना हो�-ा
वतन मां�- रहा क़ुरबानी है , सरो को कट जाना हो�-ा
क्षमा बुझने �™�-ी है , परवानो को आना हो�-ा
 
 
�™ड़ना हमे अपनों से है , जं�- नहीं परायो से
डर �™�-ने �™�-ा है अब तो , अपने ही सायो से
रक्त रंजित , प्रेम वंचित , हो चुकी है धरा सारी
सब दुखहारी , अति ब�™शा�™ी , प्रेम पुजारी कृष्णा को फिर आना हो�-ा
 
रहना मुस्कि�™ हो �-या इस धरा पर , शांति �"र अमन का
छ�™नी हो �-या सीना , मेरे प्यारे वतन का ,  छ�™नी हो �-या सीना , मेरे प्यारे वतन का
फिर किसी दानवीर कर्ण से कवच कुंड�™ �™ाना हो�-ा
फिर किसी दानवीर कर्ण से कवच कुंड�™ �™ाना हो�-ा
मुर्छित हो �-या देश मेरा भ्रस्ट्राचार के रावन से
फिर किसी हनुमान को संजीवनी �™ाना हो�-ा ,  फिर किसी हनुमान को संजीवनी �™ाना हो�-ा
मात्रभूमि की खंडित होती ज्वा�™ा में , अरमानो को ज�™ाना हो�-ा
वतन मां�- रहा क़ुरबानी है , सरो को कट जाना हो�-ा
क्षमा बुझने �™�-ी है , परवानो को आना हो�-ा
 
जं�- नहीं सरहदों पर , �-ूंज उठी है सत्ता के �-�™ियारों से
काप रही है थर थर मात्रभूमि , घर में छुपे �-द्दारों से
अहिन्षा परमो धर्मं है , जं�- नहीं �™ड़नी हथियारों से
वंचित हो रहा जनमानस , अपने ही मौ�™िक अधिकारों से
ज़वाब माँ�-ा है हमसे , भ�-त , राज�-ुरु, आजाद के ब�™िदानों ने
ज़वाब माँ�-ा है हमसे , भ�-त , राज�-ुरु, आजाद के ब�™िदानों ने
�™ेकर मशा�™ क्रांति की , उतरा है एक बुडा मैदानों में
कर्मभूमि की रक्षा में , देशप्रेम की सुरक्षा में
हर �-�™ी, हर घर से अन्ना�" को आना हो�-ा
हर �-�™ी, हर घर से अन्ना�" को आना हो�-ा
वतन मां�- रहा क़ुरबानी है , सरो को कट जाना हो�-ा
वतन मां�- रहा क़ुरबानी है , सरो को कट जाना हो�-ा
शमा बुझने �™�-ी है , परवानो को आना हो�-ा
शमा बुझने �™�-ी है , परवानो को आना हो�-ा
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          प्रेम [एक अनश्वर  एहसास  ]


सदियों से प्यासी है ये धरती , बाद�™ो को ज�™ बरसाना हो�-ा
मेरी  प्रीत की रित पर  �-ीत प्रेम के �-ाना   हो�-ा
नाच रही है राधा कबसे ,  प्रेम धुनों  पर
अब तो बांसुरी  वा�™े  कन्हैया  को आना हो�-ा
अब तो बांसुरी  वा�™े  कन्हैया  को आना हो�-ा
तोड़ के सरे  ज़माने  की बंदिशों को,तोड़ के सरे  ज़माने  की बंदिशों को
मेरी चाहत की इबादत  पर एक रोज तुम्हे आना हो�-ा
मेरी चाहत की इबादत  पर एक रोज तुम्हे आना हो�-ा

जो धरती की तपन  में अ�-न  हो , बाद�™ो को ज�™ बरसाना  हो�-ा
मेरी प्रीत की रीत पर ,  �-ीत प्रेम के �-ाना हो�-ा
मेरी प्रीत की रीत पर ,  �-ीत प्रेम के �-ाना हो�-ा

तोड़ के सारे ज़माने  की बंदिशों को,तोड़ के सारे ज़माने  की बंदिशों को
जो मेरी चाहत में इबादत हो, एक रोज तुम्हे आना हो�-ा,एक रोज तुम्हे आना हो�-ा

© 2011 Dinesh Gupta


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अच्छी तरह से �™िखा और अफ़सोसनाक सोचा
मैं तुम्हारी सादगी सुंदर ™गता है, अच्छी तरह से किया.

Posted 12 Years Ago



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Added on November 3, 2011
Last Updated on November 3, 2011

Author

Dinesh Gupta
Dinesh Gupta

Pune, Maharastra, India



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