Na Jaane Kahaan Kho Gayee (Hindi)A Poem by Gurdeep...The Lost न जाने कहाँ खो -यी ! बारिश के पानी में च™ती, एक का-ज कि मेरी कश्ती थी, कई सा™ों से धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! उस छोटे से मन में मेरे, एक प्यारी वेपर्वाही थी, कई सा™ों से धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! मित्रों के चेहरे पर हमेशा, एक प्यारी सि मुस्कान थी, उसी मुस्कान को धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! जब धन का नहीं था ™ोभ, पर --न छूने की आस् थी, उसी आस् को धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! वर्षा पश्चात ,तब इन्द्रधनुष , रं- खुशियों के फै™ाता था, उसी रं-त को धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! बद™ तब सिर्फ़ बद™ा ही नहीं, हाथी, घोड़ों जैसे भी दिखते थे, उसी द्रिश्टी को धूंड रहा हूँ. न जाने कहाँ खो -यी ! जब बुद्धि इतनी बा™ थी, सर्हदो का पता न था, हर एक टुकड़ा भूमि का, अपना सा ही तो ™-ता था ! उसी बुद्धि को धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! जहाँ चिंता"ं का शोर न था, बस हँसी खि™्खि™ाति थी, उसी हँसी को धूंड रहा हूँ , न जाने कहाँ खो -यी ! जहाँ इंद्रियों का नहीं था ज़ोर, बस नादानी हर "र थी, वही नादानी धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी ! जब चेतना इतनी सीमित थी, कहीं दूर् जाने का खया™ न था माँ के अंच™ में ही जो, विश्व नजर आ जाता था ! वही चेतना धूंड रहा हूँ, न जाने कहाँ खो -यी !
© 2015 Gurdeep...The Lost |
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Added on July 12, 2015 Last Updated on July 12, 2015 AuthorGurdeep...The LostShillong, Meghalaya, IndiaAboutHello ! Being an amateur poet, I like to express thoughts, feelings and even situations through poems. General and personal imagery, both enthuse me, depending upon the requirement. I am an engineer b.. more..Writing
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