Kavi: the writers Forum मैं ए&..
मैं एकांत हुं10 Years Agoमैं एकांत हुं,
खुशियों से बेखबर शांत हुं
हरे जंग™ से अ™ग उस पेड़ की तरह हुं-
जो अपने गिरते पि™े पत्तों पर आशूं बहा रहा है,
मैं उस पेड़ की तरह एकांत हुं।
मैं एकांत हुं,
मैं दुसरों की व्यवधान हुं
गर्मियों में गुजरते गरम हवाओं की तरह हुं-
जिसे हर कोई कोसता रहता है,
मैं उन हवाओं की तरह उदास हुं
मैं एकांत हुं,।
मैं एकांत हुं,
मैं थके कदमों से मंद हुं,
उस भिखारी बच्चे की तरह हुं,जिस पर -
दया तो सबको आती है, पर अपनाता कोई नही है।
मैं जीवन से क्™ांत हुं
मैं एकांत हुं,।
मैं एकांत हुं,
मैं ही अपना अंत हुं
उस दिपक की तरह हुं, जिसमे बाती न हो-
बिन बाती, और, वह बुझ रहा है।
मैं उस दीप की भरांति हुं
मैं एकांत हुं,।
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