बहका

बहका

A Poem by Prashant Sinha Writings
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Confusion between we learn from old generation and reality of life

"

क्या बताऊँ थोड़ा बहका हूँ

बुजुर्�-ों की बात से थोड़ा चौंक हूँ

 

वह कहते थे की दुःख का जितना सामना करो�-े

दि�™ मजबूत हो�-ा, मन में विस्वास जा�-े�-ा

दुःख सहने की ताक़त तो मि�™े�-ी ही

सुख में धीरज हो�-ा

 

हमारे साथ तो कुछ उ�™्टा ही हुआ

दुःख सहते सहते एक दिन ऐसा आया

ना दुःख सहने की ताक़त रही

�"र सुख से मन डरने �™�-ा

 

क्या बताऊँ थोड़ा बहक हूँ

माता पिता की बात से थोड़ा चौंक हूँ

 

वह कहते थे अच्छाई का परिणाम अच्छा हो�-ा

हार के बाद जीत हो�-ी

जो मुश्कि�™ों  को धैर्य से पर कर जा�"

फिर हमेशा अच्छा हो�-ा

 

हमारे साथ कुछ उ�™्टा ही हुआ

अच्छा करते करते हमारा चरित्र ही बद�™ �-या

जीत की ख्वाइश ने हमें ही बद�™ दिया

जब अच्छा होने की बारी आई, हमारा समय हो �-या

© 2016 Prashant Sinha Writings


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Added on October 14, 2016
Last Updated on October 14, 2016
Tags: बहका