मयूरी

मयूरी

A Poem by Ayushi Singh

सच्चे प्रेम पर मुझे कभी भरोसा न था.… मैंने कई दि�™ टूटते देखे  …महसूस  नहीं  किया कभी पर जब मेरे साथी दुखी होते थे तो मुझे अजीब सी चिढ़ मचती थी।  उनके सारे �™क्ष्य �"र सपने उनकी माशुका�"ं से  �™ड़ाइयों  में वाष्प हो जाते थे। भावनायें  होना अच्छा हैं पर इतना भी नहीं। था तो मैं  भी एक आम इंसान पर मुझे कभी  किसी की ज़रुरत महसूस न हुई.…या यूँ समझ �™ो  कोई मि�™ी ही नहीं । प्रेम , प्यार ,मोहब्बत, आशिकी ये सारे शब्द मुझे कभी समझ नहीं आते थे �"र उनपर आधारित कहानियाँ  , कविताएं  या फि�™्में  मेरे �™िए एक बोरिं�- पाठ से  काम न था ।  शायद मेरे �™िए यह  चीज़ें  खुदा  ने बनाई ही ना हो। यही संतोष  कर मैं अपने जीवन के नय्या च�™ता रहा। 
मेरा एक दोस्त था आक़ि�™ ,जो अपने नाम से बि�™कु�™  विपरीत था। वो ख़ास दोस्त तो नहीं था पर उसके साथ मैंने अपने जीवन के २ सा�™ व्यतीत  किये  थे  । हम सहपाठी होने के साथ साथ हॉस्ट�™ के एक कमरे में रहते थे।  वो घनिष्ट  मित्रों  में तो नहीं आता था , पर उससे  कम भी न था।  उसकी भी वही कहानी थी। । वह भी किसी को अपना सारा समय ,धन �"र मन दे बैठा था। आम भाषा में उसे �™ो�- कहें�-े 'उसे  मोहब्बत  हो �-ई थी '। दिन रात वह  उसके �™िए पत्र �™िखता �"र उसे देने जाता , जैसे मानो यही उसका धर्म �"र कर्म हो �-या हो। थक कर मैंने उससे  एक दिन पूछ ही डा�™ा ,"भाई  क्या नाम  है उसका ?" वो  बो�™ा "मयूरी "। मेरे पास मुस्कुराने के सिवा  �"र कोई चारा न था।  उसके बाद क्या था , बिना पूछे ही पूरी कहानी कमरे में �-ूंजने �™�-ी . ऐसा �™�-ा जैसे मानो मैंने  कोई रेडियो चैन�™ च�™ा दिया हो �"र उसमे कोई साहित्यिक कथा च�™ रही हो। अक्सर दोस्ती में इतना धैर्य रखना पड़ता है | मैंने भी रखा।  सारांश में इतना समझ आया की वे दोनों एक दूसरे से असीम  प्रेम करते थे । अच्छा �™�-ा जान कर ,पह�™ा ये  की यहाँ भी सच्चा प्रेम है �"र दूसरा की  रेडियो का प्रसारण संपन्न  हुआ। 
  शिक्षाविदों में तो पता नहीं पर वो शायर बहुत  अच्छा बन सकता था, इस बात पर मुझे कोई संदेह नहीं था। वैसे तो वो हर चीज़ पर शायरी �™िखने का हुनर रखता था पर कुछ पंक्तिया उसके ज़ुबान पर हमेशा रहती थी।

" ऐ अश्क अ�-र बिन मर्ज़ी के.…तू उन आँखों में आए�-ा,
कसम खुदा की मैं ज़मीं पर तुझे रोकने आऊं�-ा,
ज़न्नत या होऊं  जहन्नुम में मैं … तू मुझसे छुप न  पाए�-ा 
कसम खुदा की मैं ज़मीं पर तुझे रोकने आऊं�-ा "
हम सब के सामने जब भी ये पंक्तिया वो �-ाता था ,  खुद हमारी  हथे�™ियाँ ता�™ी के स्वर में �-ूँज उठती । कहते है ईश्वर की मर्ज़ी  के सामने इंसान ने हमेशा घुटना टेका है । एक जान �™ेवा एक्सीडेंट में आकि�™ का निधन हो �-या । २४ सा�™ की उम्र काफी कम थी जीवन जीने के �™िए , डॉक्टर ने उसे बचाने  की बहुत  कोशिश की, पर असफ�™ रहे । ये सदमा मुझे  बर्दाश्त करने में कठिनाई तो आ ही रही थी  पर एक क़रीबी दोस्त होने के नाते मुझे उसके घरवा�™ों को बताना था ।

घरवा�™े आये �"र मातम का माहौ�™ सा छा �-या । क्रियाकर्म के बाद सब च�™े �-ए । जाना भी था  । बे जान देह के पास कोई कब थक बैठा रहता । मैं भी कुछ समय अके�™ा रहना चाहता था , आकि�™ के साथ ।
मैं क़ब्रिस्तान  च�™ा �-या।  उसकी क़ब्र के पास बैठा मैं कुछ सोच ही रहा था , की मुझे ख़या�™ आया ,मयूरी का। मैंने उसे कभी अपने नेत्रों से नहीं देखा सिर्फ सुना था । कहाँ  रहती है,कैसी दिखती है मुझे कोई अंदाज़ा न था । यह  तक नहीं पता था की उसे आकि�™ के बारे में पता है भी या नहीं । यह खया�™ आया ही  था की देखा  हरे रं�- के वस्त्र में एक युवती  आकि�™ की कब्र की तरफ आ रही है । उसकी चा�™ से ऐसा महसूस हो रहा था की जैसे उसमे में प्राणं बस कुछ क्षण  के �™िए शेष है । मैं उसकी तरफ बड़ा  �"र वो आक़ि�™ की  कब्र की पास  �-िर �-ई । आश्चर्य तब हुआ जब मैंने  देखा वो रोइ नहीं ,उसकी आँखों में रोष था अश्क नहीं ।  वह  चि�™्�™ाने �™�-ी "तू बेवफा है… धोकेबाज़ है… " । मैं उसे जैसे तैसे संभा�™ कर उसके घर �™े �-या , उसकी माँ ने मुझे बताया एक हफ्ते में उसकी शादी है । मुझे अजीब �™�-ा पर मैं ख़ुश था की जीवन उसे एक मौका दे रही है आ�-े बढ़ने  का , आकि�™  के बिना ही सही । पूरे  रास्ते उसकी आँखों से आकि�™ के �™िए एक बूँद न बही ।  किसी का रोना अच्छा तो नहीं पर ऐसी स्थिति में न रोना भी कुछ अजीब था ।मैं वहां से च�™ा �-या।
 दस सा�™ बीत �-ए ।  किताब के पृष्ठों की तरह आकि�™ भी मेरे जीवन का एक पृष्ठ बन् �-या ।  एक दिन मेरा मन अपने उस पन्ने को दोहराने का हुआ जो अतीत  में  मेरे जीवन का �-हरा हिस्सा  था । बहुत  कुछ बद�™ �-या था मेरा अब उस शहर में कोई न था । काम से एक दिन का अवकाश �™ेकर मैं  अपने उस शहर �-या  जहां मेरा यार था 'आकि�™' । बस से उतरते ही मैंने  रिख्शे वा�™े को आदेश दिया की वो मुझे क़ब्रिस्तान  तक छोर दे ।  रिक्शे वा�™े ने मुझे वहां छोड़ा �"र च�™ा �-या । मैंने पास वा�™ी फू�™ की दुकान से कुछ फू�™ �™िए �"र उसकी कब्र के पास जाकर बैठ �-या। मार्ब�™ के पत्थर अब बिछ �-ए थे वहां पर।   फू�™ रखते हुए मैंने उसपर कुछ खरोन्च देखे , ऐसा �™�- रहा था कोई उसपर कुछ �™िखना चाह रहा हो , मैंने जब कब्र पर से धु�™  हटाई मैं दं�- रह �-या.… उसपर �™िखा था … 
"ए बेवफा ए धोके बाज़
सौंंप  कर  मुझे किसी �"र के हाथ
क्यों च�™ा �-या तू द�-ाबाज ,

अश्क क्या आज  �™हू बहती हूँ
सुन �™े  तू ए ना मुराद
आजा तू मेरे पास…
वरना मैं  आती हूँ तेरे पास

इस जाती से क्यों  डर  �-या …
 जब  थी मैं सदा तेरे साथ.
हिन्दू थी पर तेरी थी 
बस तेरी ही ये मयूरी थीं 

वादा तोड़ा तूने पर 
वादा मैं न तोरडुं�-ी … 
पत्थर बनकर आउं�-ी फू�™ चढ़ाने  तेरे पास 
हर रोज़ चढ़ाने तेरे पास   " 
ये पढ़ कर मैं सुन्ना रह �-या। । कुछ समझ न आया … मैं वहीं  पास में  बेंच पर बैठ  �-या । 
मैं इस पहे�™ी का हा�™ सोच ही रहा था । तभी मैंने कुछ ऐसा देखा जिसे देख कर मेरी आँखें तो भर ही आई साथ में अजीब सी सिहरन भी शरीर में दौड़ �-ई । एक २३-२४ सा�™ की युवती हरे सूट में आकि�™ की कब्र के पास जाकर बैठ �-ई । 
वो मयूरी ही थी ,पर आज उसके चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था । 

© 2016 Ayushi Singh


Author's Note

Ayushi Singh
The original award winning piece written by me. Hope you will like it

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Added on October 16, 2016
Last Updated on October 16, 2016
Tags: #lovestory #hindi #Lovestory #em