क्यूँ है और क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

क्यूँ है और क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

A Poem by Rinky Bhandari

क्यूँ है �"र क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

क्यूँ है �"र क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

निरापद नहीं कोई दिशा,प्राकाष्ठा ना बांधो कोई,

उछाह में भी है विषाद,छ्दम मुख ना साधो कोई।

वो अम्रित नही �-ं�-ाज�™ नही,विश है उसको बहने दो,

क्यूँ है �"र क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

वो हाथ जो रक्त्त में सने,परमार्थ कैंसे �™िख रहे?

दि�-्भ्रमित कर पीडियो की,भवनो को भ�-्नावाशिष्ट कर रहे।

आ�-्रह नहीं वह स्वां�- है,ना सुनो उसे बस कहने दो,

क्यूँ है �"र क्यूँ नहीं यह प्रशन अब रहने दो।

हर दिये की �™ौ पर यहां आशियाना एक ज�™ा,

अनुकम्पा ना कोई ज�-ी,�"र धष्ट मन प्रसन्न हुआ।

मर्म्भेदी घाव अहेतुक नहीं,ये खुद के बोए बीज हैं ,

यूथ्भ्रष्ट को कोइ सुख नही,जान कर भी करी�™ को,

ना मशा�™ से ना ज�™ाया कभी,तो ये घाव स्वंय मेरे ही हैं,

मुझको ही इन्हे सहने दो।

क्यूँ है �"र क्यूँ नहीं यह प्रशन अब

© 2015 Rinky Bhandari


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Added on June 22, 2015
Last Updated on June 22, 2015

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Rinky Bhandari
Rinky Bhandari

delhi, Delhi, India



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