क़त्™A Poem by abhishekसुनो ,आज मैं एक क़त्�™ कर आया हूँ ; उस सख्स का,जो कहता था तुमसे मोहब्बत है । क्या करता,वो तुम्हारी खातिर मुझसे उ�™झता था; बात कुछ भी हो,पर बात बस तुम्हारी करता था । ख्वाबों पर भी शायद,उसकी हुकूमत च�™ती थी ; ख्वाब चाहैजो हो,चेहरा बस तुम्हारा रहता था । पूरी रात इंतज़ार करता,"र पूरा दिन सोया रहता था ; कहीं भी रहता तो शायद ,तुम में ही खोया रहता था । मैं कैसा हूँ नहीं पूछा कभी,सिर्फ तुम्हारा ज़िक्र करता था; मैं �™ाख मुसीबत में रहता,वो तुम्हारी फ़िक्र करता था । न कभी मंदिर जाता था,न किसी खुदा के आ-े सर झकता था; पर तुम्हार खातिर दिप भी ज�™ाता,दुआ भी मां-ता था । न कोई चेहरा जंचता,न किसी की बात पर पिघ�™ता था; तुम्हारे चक्कर में न जाने ,कितनो के दि�™ तोड़ता था । कभी तुम्हारे फेसबुक प्रोफाइ�™ में "रों के कमैंट्स पढता था; तो कभी घंटों ,व्हाट्सप्प पे तुम्हारी फोटो स्टॉ�™क करता था । कोई "र तुम्हारा नाम भी �™े,तो उससे ज�™ता था ; "र फिर मेरा होकर,मुझसे ही उ�™झता था । तो आज मैं मिटा आया उस सख्सियत को, जो मुझ में होकर भी बस तुम्हारा हुआ करता था ।
© 2018 abhishek |
Stats
309 Views
1 Review Added on May 24, 2018 Last Updated on May 24, 2018 Author
|