kal aur aajA Poem by abhishek
तब कुछ ख्वाब थे,जो तुम्हारी प™कों पे ठिकाना ढूंढते थे,
अब कुछ अश्क हैं,जो ना जाने कबसे एक बहाना ढूंढते हैं। तब एक ईश्क था,जो पा-™पन कि हद तक जाना चाहता था, अब एक दर्द है,जीसे शायद मेरे कहीं "र चैन नहीं मि™ता। तब इक रात थी,जो तुम्हारे खया™ में सुबह तक पहुँच जाती थी, अब एक दिन है,जिसे रात के खया™ भर से ही डर ™-ता है। तब नि-ाह थी,जो हर चेहरे में बस तुम्हारा चेहरा देखती थी, अब वो नजर है,जो तुमसे होकर -ुजरने में भी सिसकती है। तब एक बात थी,जो तुम तक जाने के ™िये बेचैन करती थी, अब भी एक बात है,जो मैं तुमसे कभी कहना नहीं चाहूँ-ा। © 2018 abhishek
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Added on June 1, 2018 Last Updated on June 1, 2018 |