![]() kaha jaate hain logA Poem by abhishek
क्या खोया क्या पाया,इसी हिसाब में -ुजरती है ज़िन्द-ी,
बंद आँखों से ™म्हे जीने की अब कहा बात करते हैं ™ो- | कुछ पा ™ेने की चाहत में भ-ति रहती है ज़िन्द-ी , पाना क्यों है ,अब ऐसे सवा™ कहाँ करते हैं ™ो- | बड़ी -ाड़ी ,बड़े "हदों से मि™ता है सुकून यहां , माँ के -ोद का सुकून ,अब कहा ढूंढ़ते हैं ™ो- | बेटे को कहा फुर्सत पिता की दो बात सुनने की , दौ™त की चाहत में यह अक्सर भटकते हैं ™ो- | जिस्मों की नुमाइश पे बनती है दास्ताँ-इ-मोहब्बत, रूह तक पहुँचने का रास्ता कहाँ त™ाशते हैं ™ो- | दूरियों से ही महफूज़ रहते हैं रिश्ते अब तो , जितना मि™ते रहते हैं ,उतना बिछड़ते हैं ™ो- | जीतने,हारने,पाने,पहुँचने की बातें हैं यहां , काश की एक अच्छी नींद की भी बात करते ™ो- | ना जाने किन हवा"ं ने मोड़ा है रुख ज़िन्द-ी का , ज़िन्द-ी सँवारने में ही ज़िन्द-ी भु™ाते जाते हैं ™ो- | © 2019 abhishek |
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Added on October 11, 2019 Last Updated on October 11, 2019 |