Khubsurat thi zindagi

Khubsurat thi zindagi

A Poem by abhishek

ज़िन्द�-ी यूँ भी खूबसूरत थी ,
इसे इतने मेकअप की क्या ज़रूरत थी|
वो किनारे पर बैठकर सीखता रहा तैरना,
जब डूबा तो कहने �™�-ा किस्मत थी |

हमेशा पा �™ेने की कोशिस में �-ुज़रती जिंद�-ी ,
दो प�™ ठहर मुस्कुराने की कहाँ फुर्सत थी |
जो था उसे छोड़ जमाने भर की फ़िक्र रही ,
जब वो ना रहा कहने �™�-े मोहब्बत थी |

जख्मों पर जब मुस्कुराने �™�-ी दुनिया तो सोचा,
कब अपनों को आँशु पोछने की इजाज़त थी |
जहाँ हारे हैं , बस शिकायतें ही शिकायतें हैं ,
जहाँ जीते वहां याद नहीं की क्या शिकायत थी |

मुड़कर देखता हूँ तो अक्सर सोचने �™�-ता हूँ ,
ज़िन्द�-ी एक सबक थी या की शरारत थी .
यूँ तो इतनी खूबसूरत थी ज़िन्द�-ी,
फिर इसे इतने मेकअप की क्या जरुरत थी.

© 2020 abhishek


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Added on July 15, 2020
Last Updated on July 15, 2020

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abhishek
abhishek

kolkata, west bengal, India



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kal aur aaj kal aur aaj

A Poem by abhishek